शवयात्रा में लोग
आजकल शवयात्रा में जो लोग इक्कठा होते हें उनमे से अधिकतर केवल खड़े रह कर बातें करते रहते है . शोकाकुल परिवार के साथ कुछ लोग तो लगे रहते है . उनको सांत्वना बंधाते है . उनके परिवार के लोगो को सँभालते है . कुछ लोग शवयात्रा के तय्यारी भी करते है . लेकिन अधिकांश लोग केवल औपचारिकता निभाने के लिए आते है खड़े रहते है . मोबाइल पर बतियाते रहते है या फिर ग्रुप बनाकर अपनी चर्चा में व्यस्त होते हें .
इसके बाद जब शवयात्रा शुरू होती है तो अपने ग्रुप के साथ बतियाते हुए चलते है . शवयात्रा में जाने वाले प्रत्येक व्यक्ति का कर्त्तव्य होता है की वो मृतक को कन्धा दे. पर देखा ये जाता है की केवल कुछ लोग ही अर्थी को कन्धा देते है और वही लोग बार बार आगे पीछे होकर उस अर्थी को शमशान तक ले जाते है . मौसम गर्मी या बरसात का हो तो और हॉल ख़राब हो जाता है . लेकिन पीछे चलने वाले काफी लोगों में से कोई भी आगे नहीं आते और अर्थी को कन्धा नहीं देते . देख कर बड़ा दुःख होता है . यदि शवयात्रा में शामिल सभी लोग अर्थी को कन्धा बारी बारी से दें तो केवल कुछ लोगो पर ही उसका भर नहीं पड़ेगा और सभी का शवयात्रा में शामिल होना भी सार्थक होगा .
आप लोग इस विषय पर क्या सोचते है अपनी प्रतिक्रिया जरुर लिखे.
Monday, March 22, 2010
Thursday, March 11, 2010
एम्बुलेंस,फायर ब्रिगेड और ट्रेफिक
एम्बुलेंस,फायर ब्रिगेड और ट्रेफिक
बड़े बड़े शहरों में ट्राफिक के बड़ी मारा-मारी है. सड़कों पर दोपहिया और चारपहिया वाहनों की लाइन के बीच जब जन सामान्य का चलना दूभर होता है ऐसे में कई बार देखने में आता है की एम्बुलेंस के सायरन को सुनकर भी लोग उसको साइड नहीं देते और एम्बुलेंस में जा रहे मरीज की हालत ख़राब होती जाती है या फिर वो वही रोड पर अपनी अंतिम सांसे लेने लगता है . कई बार ऐसा मज़बूरी में होता है की साइड देने के लिए जगह नहीं होती है अतः अन्य वाहनचालक साइड नहीं दे पाते पर हमेशा ऐसा नहीं होता. कई बार आगे चलने वाला वहां चालक जल्दबाजी के कारण साइड नहीं देता है . सबको जल्दी होती है पर इस जल्दबाजी में उस मरीज को प्राथमिकता देना चाहिए , हमारी जल्दी कोई जल्दी नहीं है उसके मुकाबले जो जिन्दगी और मौत के बीच संघर्षरत है . मेरा सभी पाठकों से निवेदन है की यदि आप इस तरह के किसी वाकये को देखे तो पहले प्राथमिकता दें एम्बुलेंस को . यही स्थिति फायर ब्रिगेड के लिए भी होती है यदि हम इन दोनों सेवा वाले वाहनों को भीड़ भरी रोड पर प्राथमिकता देते है तो हम अनजाने ही एक पुण्य का काम कर जाते है . शायद आप सभी मेरी बात से सहमत होंगे और जब ऐसा सामने देखे तो जरुर प्रयास करे की इन दोनों सेवा वाहनों को शीघ्र निकलने का अवसर मिलें आपकी प्रतिक्रिया और सुझावों का स्वागत है .
बड़े बड़े शहरों में ट्राफिक के बड़ी मारा-मारी है. सड़कों पर दोपहिया और चारपहिया वाहनों की लाइन के बीच जब जन सामान्य का चलना दूभर होता है ऐसे में कई बार देखने में आता है की एम्बुलेंस के सायरन को सुनकर भी लोग उसको साइड नहीं देते और एम्बुलेंस में जा रहे मरीज की हालत ख़राब होती जाती है या फिर वो वही रोड पर अपनी अंतिम सांसे लेने लगता है . कई बार ऐसा मज़बूरी में होता है की साइड देने के लिए जगह नहीं होती है अतः अन्य वाहनचालक साइड नहीं दे पाते पर हमेशा ऐसा नहीं होता. कई बार आगे चलने वाला वहां चालक जल्दबाजी के कारण साइड नहीं देता है . सबको जल्दी होती है पर इस जल्दबाजी में उस मरीज को प्राथमिकता देना चाहिए , हमारी जल्दी कोई जल्दी नहीं है उसके मुकाबले जो जिन्दगी और मौत के बीच संघर्षरत है . मेरा सभी पाठकों से निवेदन है की यदि आप इस तरह के किसी वाकये को देखे तो पहले प्राथमिकता दें एम्बुलेंस को . यही स्थिति फायर ब्रिगेड के लिए भी होती है यदि हम इन दोनों सेवा वाले वाहनों को भीड़ भरी रोड पर प्राथमिकता देते है तो हम अनजाने ही एक पुण्य का काम कर जाते है . शायद आप सभी मेरी बात से सहमत होंगे और जब ऐसा सामने देखे तो जरुर प्रयास करे की इन दोनों सेवा वाहनों को शीघ्र निकलने का अवसर मिलें आपकी प्रतिक्रिया और सुझावों का स्वागत है .
shavyatra me shamil log
शवयात्रा में लोग
आजकल शवयात्रा में जो लोग इक्कठा होते हें उनमे से अधिकतर केवल खड़े रह कर बातें करते रहते है . शोकाकुल परिवार के साथ कुछ लोग तो लगे रहते है . उनको सांत्वना बंधाते है . उनके परिवार के लोगो को सँभालते है . कुछ लोग शवयात्रा के तय्यारी भी करते है . लेकिन अधिकांश लोग केवल औपचारिकता निभाने के लिए आते है खड़े रहते है . मोबाइल पर बतियाते रहते है या फिर ग्रुप बनाकर अपनी चर्चा में व्यस्त होते हें .
इसके बाद जब शवयात्रा शुरू होती है तो अपने ग्रुप के साथ बतियाते हुए चलते है . शवयात्रा में जाने वाले प्रत्येक व्यक्ति का कर्त्तव्य होता है की वो मृतक को कन्धा दे. पर देखा ये जाता है की केवल कुछ लोग ही अर्थी को कन्धा देते है और वही लोग बार बार आगे पीछे होकर उस अर्थी को शमशान तक ले जाते है . मौसम गर्मी या बरसात का हो तो और हॉल ख़राब हो जाता है . लेकिन पीछे चलने वाले काफी लोगों में से कोई भी आगे नहीं आते और अर्थी को कन्धा नहीं देते . देख कर बड़ा दुःख होता है . यदि शवयात्रा में शामिल सभी लोग अर्थी को कन्धा बारी बारी से दें तो केवल कुछ लोगो पर ही उसका भर नहीं पड़ेगा और सभी का शवयात्रा में शामिल होना भी सार्थक होगा .
आप लोग इस विषय पर क्या सोचते है अपनी प्रतिक्रिया जरुर लिखे.
आजकल शवयात्रा में जो लोग इक्कठा होते हें उनमे से अधिकतर केवल खड़े रह कर बातें करते रहते है . शोकाकुल परिवार के साथ कुछ लोग तो लगे रहते है . उनको सांत्वना बंधाते है . उनके परिवार के लोगो को सँभालते है . कुछ लोग शवयात्रा के तय्यारी भी करते है . लेकिन अधिकांश लोग केवल औपचारिकता निभाने के लिए आते है खड़े रहते है . मोबाइल पर बतियाते रहते है या फिर ग्रुप बनाकर अपनी चर्चा में व्यस्त होते हें .
इसके बाद जब शवयात्रा शुरू होती है तो अपने ग्रुप के साथ बतियाते हुए चलते है . शवयात्रा में जाने वाले प्रत्येक व्यक्ति का कर्त्तव्य होता है की वो मृतक को कन्धा दे. पर देखा ये जाता है की केवल कुछ लोग ही अर्थी को कन्धा देते है और वही लोग बार बार आगे पीछे होकर उस अर्थी को शमशान तक ले जाते है . मौसम गर्मी या बरसात का हो तो और हॉल ख़राब हो जाता है . लेकिन पीछे चलने वाले काफी लोगों में से कोई भी आगे नहीं आते और अर्थी को कन्धा नहीं देते . देख कर बड़ा दुःख होता है . यदि शवयात्रा में शामिल सभी लोग अर्थी को कन्धा बारी बारी से दें तो केवल कुछ लोगो पर ही उसका भर नहीं पड़ेगा और सभी का शवयात्रा में शामिल होना भी सार्थक होगा .
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