Followers

Pages

Saturday, April 9, 2011

एम्बुलेंस को रास्ता दें या नहीं ?

इसके पहले के एक ब्लॉग में मैंने एम्बुलेंस के सायरन को सुन कर भी लोगो द्वारा जगह न दिए जाने के बारे में लिखा था . लेकिन २४ मार्च २०११ के समाचार पत्र में छपी एक खबर ने तो हिला कर रख दिया है . में यह खबर जस की तस यहाँ लिख रहा हूँ . बदमाशों ने रोकी एम्बुलेंस - माँ शिशु मरे. खातेगाव , एक प्रसूता को लेकर जा रही जननी एक्सप्रेस एम्बुलेंस को कुछ बदमाशों ने रास्ते में रोक लिया . विवाद के दौरान प्रसूता ने एम्बुलेंस में ही शिशु को जन्म दे दिया . लेकिन विवाद के कारण देर होने से शिशु की एम्बुलेंस में ही मौत हो गयी और प्रसूता ने खातेगाव अस्पताल में दम तोड़ दिया . प्रसूता मनीता पति गोपाल को मंगलवार सुबह खातामाव से हरणगाव लाया जा रहा था . मंचवास में बीच सड़क पर बाईक खड़ी देख जननी एक्सप्रेस के चालक शहीद खान ने सायरन बजाया.यह बदमाशों को इतना नागवार गुजरा की उन्होंने चालक से गाली गलोच शुरू कर दी . विवाद करीब ३५ मिनिट तक चलता रहा . इसी दौरान मनीता ने एम्बुलेंस में ही शिशु को जन्म दे दिया . चालक एम्बुलेंस को लेकर हरणगाव उप स्वस्थ्य केंद्र पहुंचा .जहाँ ए एन एम् निरुलता गौंड ने शिशु की मौत की घोषणा की . बाद में प्रसूता को खातेगाव भेजा गया वहा उपचार के बाद भी उसे बचाया न जा सका . क्या ऎसी घटना के बाद भी हम एम्बुलेंस के रास्ते में बाधा बनेंगे या सायरन सुन कर तुरंत एक तरफ होकर उसको रास्ता देंगे ?

No comments: